Sunday, April 25, 2010

चंद ख़्वाबों का किस्सा

एक ख्वाब और चँद ताने-बाने
चारों और जाल गहरा होता चला जाता है
ख्वाब पैर पसारता है,
छटपटाता है
जाल में उलझ जाता है
धुंध, अँधेरा, कमजोरी
तड़पता, कोशिश करता
बाकी ख़्वाबों की तरह मर जाता है

उन अंधेरों की घुटन को महसूस किया
एक ठंडा सा एहसास, एक डर
एक और ख्वाब, एक और
छटपटाहट
इस जाल की गहराई को नापता है
हर सीढ़ी के साथ पंख और मज़बूत होते हैं
हर रेशे के साथ हिम्मत बंधती है
हर जाल ख़त्म होता जाता है
हर बंधन टूटता है
ख्वाहिशों, ख़्वाबों की तो यह आदत सी है
बस एक मौका हो पर पसारने का
गर पर कमज़ोर हों तो बीच राह में दम तोड़ देंगे
गर मज़बूत हों तो समंदर भी पार कर जाएँगे

2 comments:

  1. The lines that moved me:

    एक और ख्वाब, एक और छटपटाहट
    इस जाल की गहराई को नापता है


    ख्वाहिशों, ख़्वाबों की तो यह आदत सी है
    बस एक मौका हो पर पसारने का

    You have so beautifully captured "the stuff that dreams are made of"

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  2. ye khwaab bahot hi bure hote hain. in khwabon ko zyada pankh mat do, khas kar ke tab jab aap unko hasil nahi kar sakte ya dunia ko manva nahi sakte. varna ye dunia taiyyar beithi hai apke pankh katne ko............ LADO ISLIYE NAHI KE SAMAJ BADLEGA, LADO ISLIYE, KAM SE KAM MERE ANDER KA AADMI TO TUTEGA.

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