Thursday, July 1, 2010

no title yet... suggestions welcome!

उम्र के इस पढाव पर

सहमे हुए , सिकुड़े हुए शरीर

धुंधलाती , पथराई हुई आँखें

दूर तक टकटकी बांध कर देखती ,

शायद कोई उम्मीद हो कहीं .

हर पल में मौत को जीते लोग ,

हर मौत में एक पल .

कितने चहरे यहाँ आये हैं ,

कितनी उम्मीदें बंधी हैं ,

मैं स्तब्ध सी खड़ी निहारती हूँ .

एक हलकी सी मुस्कान ,

और एक हाथ मेरी तरफ बढ़ता है .

कई हाथ , कई चहरे ,

कई मुस्कुराहटें उम्मीद भरी .

इन हाथों की छुअन का क्या जवाब दूँ ?

मैं अंतर्मन में झांकती हूँ ,

मेरी झोली तो खाली है ,

मैं झोली फैलाये यहाँ आई थी .

अजब दुविधा में फँसी हूँ ,

मैं खुद से ही मुस्कुरा देती हूँ .

और देखो , दसों मुस्कुराहटें बिखर गयी ,

दसों चहरे हंस पड़े

शायद यही देने आई थी .

शायद यही लेने आई थी .


*this poem is dedicated to the people i saw and met during my visits to an old age home.

3 comments:

  1. It is very nice.. Happiness is ultimate motive of life.. we can give happiness and be happy in this world.. that is all a life time takes to realize..

    I like it..

    ReplyDelete
  2. wow:):)i did not know i am friends with a philosopher:):)

    ReplyDelete