उम्र के इस पढाव पर
सहमे हुए , सिकुड़े हुए शरीर
धुंधलाती , पथराई हुई आँखें
दूर तक टकटकी बांध कर देखती ,
शायद कोई उम्मीद हो कहीं .
हर पल में मौत को जीते लोग ,
हर मौत में एक पल .
कितने चहरे यहाँ आये हैं ,
कितनी उम्मीदें बंधी हैं ,
मैं स्तब्ध सी खड़ी निहारती हूँ .
एक हलकी सी मुस्कान ,
और एक हाथ मेरी तरफ बढ़ता है .
कई हाथ , कई चहरे ,
कई मुस्कुराहटें उम्मीद भरी .
इन हाथों की छुअन का क्या जवाब दूँ ?
मैं अंतर्मन में झांकती हूँ ,
मेरी झोली तो खाली है ,
मैं झोली फैलाये यहाँ आई थी .
अजब दुविधा में फँसी हूँ ,
मैं खुद से ही मुस्कुरा देती हूँ .
और देखो , दसों मुस्कुराहटें बिखर गयी ,
दसों चहरे हंस पड़े
शायद यही देने आई थी .
शायद यही लेने आई थी .
*this poem is dedicated to the people i saw and met during my visits to an old age home.
like it! :)
ReplyDeleteIt is very nice.. Happiness is ultimate motive of life.. we can give happiness and be happy in this world.. that is all a life time takes to realize..
ReplyDeleteI like it..
wow:):)i did not know i am friends with a philosopher:):)
ReplyDelete